Thursday, April 4, 2019

बिरसा मुण्डा भाषा एवं सांस्कृतिक महोत्सव-2019




                                          बिरसा मुण्डा भाषा एवं सांस्कृतिक महोत्सव
                                          झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय, ब्राम्बे, राँची
                                                                  02-04 अप्रैल, 2019

झारखण्ड केन्द्रीयविश्वविद्यालय, ब्राम्बे, राँची में लुप्तप्राय भाषा केन्द्र, झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय, राँची द्वारा आयोजितबिरसा मुण्डा भाषा एवं सांस्कृतिक महोत्सव-2019 के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि श्री नंद कुमार साय, अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार, विश्वविद्याल के कुलपति प्रो. नंद कुमार यादवइंदु’, विशिष्ट अतिथि डॉ. रोमा यादव, प्रो. हरि कुमार, रजिस्ट्रार एवं मौजूद थे। कार्यक्रम में श्री साय ने कहा कि जनजातीय परम्परा और उनकी अपनी संस्कृति की अलग पहचान है। श्री साई ने कहा कि आधुनिकता के समय मे भी लोक ज्ञान का महत्व नकारा नहीं जा सकता

अगर जीवन जीने की  पद्धति सही मायने में  सीखनी हो तो वो भारत के जनजाती वर्ग से सीखने की ज़रुरत है उन्होंने जनजातीय संस्कृति की महत्ता पर जोर दिया और आदिवासियों की शिक्षा को बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाने की बाते कहीं।

कुलपति श्री नन्द कुमार यादव इंदु ने कहा कि विश्वविधायलय भाषाओं के संवर्धन और संरक्ष के प्रति जिम्मेदारी और कटिबद्ध तरीके से काम कर रहा है


विशिष्ट अतिथि, डॉ. रोमा यादव  ने  लुप्तप्राय भाषाओं पर बात करते हुये उनके बचाव करने  की बात कही

कार्यक्रम के दूसरे दिन  साहित्यिक सम्मेलन का आयोजन किया गया  जिसमें झारखण्ड के कई ख्याति प्राप्त साहित्यकारों ने शिरकत की अगले हिस्से में अकादमिक सेमिनार और संस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया
इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में झारखण्ड की 32 जनजातीय समुदायों का आगमन हुआ। कार्यक्रम में जनजाति विषयक किताबों की प्रदर्शनी, जनजातीय खाद्य पदार्थ एवं जनजातीय नृत्य संगीत का प्रदर्शन हुआ। साथ ही जनजातीय लेखकोंएवं विचारकों की संगोष्ठी होगी। जनजातीय समुदायों के बुजुर्गों को भी अपनी बातों को मंच पर रखने के लिए सेमिनार हुआ।  जनजातीय संस्कृति एवं भाषा, उनकी आत्मनिर्भरता एवं आत्मविश्वास को बढ़ावा देने के  उद्देश्य से  इन कार्यक्रमों का आयोजन किया गया ।  
बिरसा मुंडा भाषा एवं संस्कृति महोत्सव के तीसरे और समापन दिन का आरंभ संगोष्ठी-सत्र (प्रथम-सत्र से हुआ इस सत्र की अध्यक्षता प्रोबेहरा, राजीव गांधी विश्वविद्यालय,  ईटानगर, अरुणाचल प्रदेश ने किया मंच संचालन एवं सत्र-समन्वयक का कार्य विश्वविद्यालय के जनजातीय अध्ययन विभाग के सहायक प्राध्यापक एवं लुप्तप्राय भाषा केंद्र के सह-समन्वयक श्री सुधांशु शेखर द्वारा किया गया उक्त सत्र में स्थानीय वक्ताओं द्वारा अपनी भाषा, संस्कृति सामाजिक-एवं आर्थिक विषयों से संबंधित विचारों को अभिव्यक्त किया गया जिनमें से श्री कमलकिशोर पूर्ती भाषा से शांति बराइक, (चिक बराइक, सादरी भाषा, रामेश्वर सिंह चेरो सादरी भाषा, मिलन असर, असुरी भाषा तथा अरुण तिग्गा (उरांव भाषा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे सत्र के सभी वक्ताओं ने हिंदी एवं अपने मातृ भाषा में अपना उद्बोधन दिया साथ ही इनके द्वारा अपनी मातृ भाषा में लोक गीतों की प्रस्तुति की गई सत्र के अंत में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रो. आर.सी. बेहरा ने कहा कि भाषा, संस्कृति और पहचान एक दूसरे पर आधारित हैं उन्होंने सभागार में एक प्रश्न के माध्यम से अपनी बात रखी कि क्या भाषा और संस्कृति के खो जाने से व्यक्ति अथवा समुदाय की पहचान भी खो जाती है सत्र के अंत में संस्कृति, मानवीकी एवं समाज विज्ञान विद्यापीठ के संकाध्यक्ष, डॉ. रवीन्द्रनाथ शर्मा द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया
द्वितीय-सत्र संस्कृति कार्यक्रम मेंजनजातीय वृत्तचित्र (फिल्म प्रदर्शन में सत्र-समन्वयक का कार्य श्री अभ्युदय अनुराग द्वारा किया गया तथा जनजातीय भाषा एवं संस्कृति के प्रख्यात वृत्तचित्र निर्माता, श्री बीजू टोप्पो द्वारा जनजातीय भाषा एवं संस्कृति के बदलते स्थितियों के बारे में सभा को संबोंधित कियासाथ ही उन्होंने वृत्तचित्र निर्माण एवं प्रदर्शन से संदर्भित बातों को सभागार में रखा फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया तथा रंजीत उरांव द्वारा निर्देशितपेनाल्टी कॉर्नर कुरुख भाषा में बनाई गई वृत्तचित्र एक गरीब आदिवासी व्यक्ति जो झारखंड के एक गाँव में अपने देशी मुर्गे को गाँव के बाजार में बेचने के लिए संघर्ष करता है वह अपने खेत में मुर्गी पालन करता है, ताकि उसकी बेटी के लिए हॉकी स्टिक और जूता खरीद सके। इस वृत्तचित्र के माध्यम से निर्देशक ने एक गरीब जनजातीय परिवार के एक साथ कई समस्याओं से घिरे होने की विवशताओं को चित्रित किया है

समापन-सत्र (तृतीय-सत्र) के शुरुआत में लुप्तप्राय भाषा केंद्र के सह-समन्वयक, श्री सुधांशु शेखर द्वारा तीन दिवसीय बिरसा मुंडा भाषा एवं संस्कृति महोत्सव में आयोजित कार्यक्रमों का सारांश प्रस्तुत किया गया इस सत्र में मंचासीन विद्वजनों में झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नन्द कुमार यादव इंदु’, विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के कुलपति प्रो. रमेश शरण,विशिष्ट अतिथि एवं प्रो. जॉन पीटरसन, मुख्य अतिथि प्रो. आर.सी. बेहरा तथा झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री एस. एल. हरिकुमार उपस्थित रहे समापन-सत्र के बढ़ते चरण में झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति ने अपने उद्बोधन के आरंभ में लुप्तप्राय भाषा केंद्र की परियोजना समन्वयक सह--समन्वयक तथा केंद्र में कार्यरत सभी कर्मियों के प्रति इस तीन-दिवसीय महोत्सव के सफल आयोजन हेतु आभार प्रकट किया इन्होंने अपने वक्तव्य को आगे गति देते हुए कहा कि जनजातीय समुदाय के संस्कृति में समाहित नृत्य-संगीत, कला-साहित्य के मध्य निहित विवधताओं को इस प्रकार के समुदायिक सम्मलेन के द्वारा जनता के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है विशिष्ट अतिथि विनोभा भावे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रमेश शरण द्वारा भाषा की राजनीति को लेकर अपने वक्तव्य में डॉ. रामदयाल मुंडा को याद करते हुए उन्हें जनजातीय समुदाय के अध्ययन का संस्थापक कहा गया लेकिन इस क्षेत्र में  अपनी क्षमता का सही तरीके इस्तेमाल नहीं कर पाने खेद भी जताया उन्होंने झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के द्वारा जनजातीय भाषा संरक्षण के प्रति उठाए गए इस कदम को सराहनीय बताया प्रो. जॉन पीटरसन ने झारखंड के जनजातीय भाषाओं (सदरी,मुंडा,खड़िया, हो आदि को और उसके भाषिक अभिलक्षणों को विस्तारपूर्वक समझाते हुए भाषावैज्ञानिक पक्ष से अपनी बात रखी कार्यक्रम के समापन के समय सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें रांची विश्वविद्यालय के आर्ट एवं परफोर्मेंस विभाग के छात्रों द्वारा प्रस्तुति दी गई सुग्गा नृत्य गोंड समुदाय, सिमडेगा के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया वहीं कुरुख उरांव जनजाति समुदाय के नृत्य का प्रस्तुतीकरण रांची से आए हुए कलाकारों द्वारा दिया गया कार्यक्रम का आभार झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलसचिव द्वारा किया गया कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. सीमा ममता मिंज,लुप्तप्राय भाषा केंद्र की परियोजना समन्वयक, श्री सुधांशु शेखर सह-समन्वयक,  लुप्तप्राय भाषा केंद्र डॉ. रवीन्द्रनाथ शर्मा, सदस्य लुप्तप्राय भाषा केंद्र सहायक,  प्राध्यापक, गुंजल इकर मुंडा एवं जोया खालिद, लुप्तप्राय भाषा केंद्र के अन्य कर्मी ऋषिका कश्यप, डॉ. विक्रम जोरा, डॉ. अनामिका, सुश्री कुमारी शिल्पा, श्री अरुण पांडे, सुश्रीपुष्पा तिग्गा, श्री अभ्युदय अनुराग, श्री प्रशांत कुमार तथा श्री अभिषेक कुमार सिंह ने अपनी अहम भूमिका निभाई

1 comment:

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